हाल ही में मुंबई की एक विशेष अदालत ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की पूर्व अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और अन्य अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। यह मामला 1994 में एक कंपनी की लिस्टिंग से संबंधित कथित अनियमितताओं से जुड़ा है। इस आदेश के बाद सेबी ने इस पर कानूनी चुनौती देने की घोषणा की है।
अदालत का आदेश और आरोप
1 मार्च 2025 को विशेष न्यायाधीश एस.ई. बांगर ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को निर्देश दिया कि वे माधबी पुरी बुच, सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अश्विनी भाटिया, अनंत नारायण, कमलेश चंद्र वर्श्नेय, बीएसई के अध्यक्ष प्रमोद अग्रवाल और सीईओ सुंदररमन राममूर्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करें। यह आदेश पत्रकार सपन श्रीवास्तव की शिकायत पर आधारित है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि इन अधिकारियों ने 1994 में एक कंपनी की लिस्टिंग में अनियमितताओं की अनुमति दी, जिससे निवेशकों को नुकसान हुआ।
SEBI की प्रतिक्रिया
सेबी ने अदालत के इस आदेश पर असहमति जताते हुए कहा है कि वे उचित कानूनी कदम उठाएंगे। सेबी का कहना है कि जिन अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर का आदेश दिया गया है, वे 1994 में संबंधित पदों पर नहीं थे। इसके अलावा, सेबी ने यह भी उल्लेख किया कि शिकायतकर्ता पहले भी इसी प्रकार की कई याचिकाएं दायर कर चुके हैं, जिन्हें अदालतों ने खारिज किया है।
बीएसई की प्रतिक्रिया
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) ने भी इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि वे आवश्यक कानूनी कदम उठाएंगे। बीएसई का कहना है कि जिन अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया है, वे 1994 में अपने पदों पर नहीं थे और संबंधित कंपनी से किसी भी रूप में जुड़े नहीं थे।
मामला क्या है?
शिकायतकर्ता सपन श्रीवास्तव ने आरोप लगाया है कि सेबी के अधिकारियों ने 1994 में एक ऐसी कंपनी की लिस्टिंग की अनुमति दी, जिसने नियमों का पालन नहीं किया था। उनका दावा है कि अधिकारियों की इस लापरवाही से बाजार में हेरफेर और कॉर्पोरेट धोखाधड़ी को बढ़ावा मिला, जिससे निवेशकों को नुकसान हुआ।
Conclusion- SEBI
यह मामला सेबी और बीएसई के पूर्व और वर्तमान अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आरोपों से जुड़ा है। सेबी और बीएसई दोनों ने अदालत के आदेश को चुनौती देने की घोषणा की है, जिससे यह मामला आने वाले दिनों में और भी महत्वपूर्ण हो सकता है। निवेशकों और बाजार विशेषज्ञों की नजर इस पर बनी हुई है, क्योंकि इसका प्रभाव भारतीय शेयर बाजार और नियामक संस्थाओं की साख पर पड़ सकता है।
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